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हनुमान गढ़ी | भैरवगढ़ी | यात्रा 5 अगस्त 2020 | Uttarakhad | Vlog | Nature Explore | Kirtikhal,

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Published 13 Aug 2020

5 अगस्त सनातन धर्म के लिए एक यादगार दिन था, एक तरफ जहाँ 500 साल का इंतजार खत्म हुवा आयोध्या मे श्री राम मंदिर का भूमि पूजन हुवा वही ऐसे ऐतिहासिक दिन पर हमने हनुमानगढ़ी और वहां से फिर भैरवगढ़ी की यात्रा पूरी की, वैसे तो भैरवगढ़ी की यात्रा हर साल ही करते है लेकिन भैरवगढ़ी के सामने और अधिक ऊंचाई मे स्तिथ है हनुमान जी का मंदिर है वहां पहली बार जाने का अनुभव शानदार रहा, वहां की खूबसूरती और अलौकिक सौंदर्य के पल हमने इस vlog वीडियो मे संजोये है, हनुमानगढ़ी का रास्ता भैरवगढ़ी के रास्ते से आधे मे दूसरी दिशा मे कट जाता है, जो की kirtikhal से पैदल यात्रा शुरू होती है भैरवगढ़ी 2 से 2.5 km की ख़डी चढाई की पैदल यात्रा है और वही हनुमानगढ़ी 3 से 3.5 km की ख़डी चढाई की पैदल यात्रा है, दोनों की यात्रा का अनुभव बेहद ही सुखद है, शब्दो मे सम्पूर्ण यात्रा को बया करना मुमकिन नहीं हो पायेगा, दोनों ही जगह के नज़ारे तुंगनाथ और rudrnath जैसे पैदल यात्रा के जैसे अनुभव कराते है. भैरव गढ़ी:  यह लगभग 6,100 फीट ऊंचा एक नुकीले आकार की पहाड़ी पर गुमखाल कीर्ति, द्वारी खाल के निकट स्थित है, जिसके पीछे पूर्वी नायर नदी है। उसकी एक ऐतिहासिक विशेषता है कि वर्ष 1814 में यहां अंग्रेजों एवं गोरखा सैनिकों के बीच एक घमासान युद्ध हुआ था। भैरव गढ़ी की कथा.. एक गांव का आदमी रोज़ अपने जानवरों को जंगल में चराने ले जाता था..उसकी एक गाय जो दूध देती थी एक समय के बाद उसने घर पर दूध देना बंद कर दिया... आदमी ने सोचा कि कोई न कोई इसका दूध रास्ते में निकल देता है.... एक दिन वह गाय का पीछा करते करते जंगल में गया उसने देखा कि उसकी गाय एक पेड़ के नीचे अपना दूध छोड़ रही है...उसने उस पेड़ को काटने का मन बनाया, जिनसे ही उसने कुल्हाडी से उस पेड़ पर वार किया उसके अन्दर से खून आने लगा... फ़िर एक आवाज़ आई कि में भैरों हूँ.... फ़िर उस आदमी ने वहाँ पर भैरों का मन्दिर बनाया.... गोर्खावों के युद्ध में भैरों ने गाओं वालों के मदद कि... उसने उपर से ही पत्थर बरसाए.. आज भी कहते हैं कि अगर कोई आदमी उस एरिया में किसी मुसीबत में तो वह उन्सकी मदद करते हैं . अगर किसी को रस्ते में रात हो गई तो वह आवाज़ लगाकर उसको रास्ता बताता है...., यहाँ तक कि किसी के जानवर खेतो में घुस जाते थे तो वह गाँव वालों को आवाज़ देकर बुलाता था... गढ़वाल आठवीं सदी तक ५२ गढ़ियों में बंटा था ! इन ५२ गढ़ियों में एक गढ़ी भैरों गढ़ी भी है ! वैसे पूरा उत्तरा खंड देव भूमि से जाना जाता है ! गंगोत्री, यमनोत्री, गौरी कुण्ड, केदार नाथ, बद्री नाथ, नर-नारायण पर्वत, नील कंठ, जोशीमठ, हरिद्वार, रूद्र प्रयाग, देव प्रयाग, कर्ण प्रयाग, श्री नगर, गुप्त कासी, ऋषिकेश, सहस्त्र धारा, नैनीताल, रानी खेत, कर्वाश्रम और भी बहुत सारे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान हैं जिन्हें कुदरत ने खूबसूरती से तरासकर उत्तराखंड की सुन्दरता में चार चाँद लगा दिए हैं ! देश विदेश से असंख्य पर्यटक बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं, यहाँ कदम कदम पर मंदिरों में शीश झुकाते हैं, गंगा - यमुना, मंदाकिनी, अलक नंदा, भागीरथी, राम गंगा में डुबकी लगाते हैं ! प्रवतों से गिरते झरने, श्वेत आवरण से लिपटी ऊंची ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं, हरे भरे खेत, रंग विरंगे फूलों से महकती फूलों की घाटी में खो कर दिल यहीं छोड़ जाते हैं ! कुछ सैलानी तो ऐसे भी होते हैं जो बार बार इस देव भूमि में आते हैं, कुछ वापिस चले जाते हैं कुछ यहीं के हो कर रह जाते हैं ! इन खूब सूरत पहाड़ियों के ऊपर एक पहाड़ पर एक बहुत प्राचीन मंदिर है "लंगूर भैरों " मंदिर" ! गढ़वाल का एक मात्र रेलवे स्टेशन कोटद्वार से गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन की बस द्वारा दुगड्डा, फतेहपुरी, गुमखाल होते हुए केतुखाल में बस से उतरना पड़ता है ! यहाँ से पहाडी पर चढने के लिए मंदिर कमिटी ने सीमेंट रोडी बदरपुर से एक घुमावदार आराम दायक रास्ता शीधे मंदिर के आँगन तक बना रखा है केतुखाल में चार छ: दुकाने हैं, यहाँ से चढ़ाई चढ़नी शुरू की, बड़े आराम से हम अगले पड़ाव तक पहुंचे ! वहां पर हनुमान जी का और काली माँ का मंदिर है ! यहाँ दर्शन करने के बाद हम पहुंचे भैरों बाबा के मंदिर में ! यहाँ से चारों तरफ दूर दूर तक का नजारा देखने लायक था ! पहाड़ों के ऊपर बसे गाँव, नदी, पर्वत श्रेणियां, पहाड़ों से पीछे लम्बे चौड़े मैदान, जंगल और दौड़ती हुई रेल और सडकों पर दौड़ती हुई बहुत सारी, मोटर, ट्रक, कारें ! मंदिर में पूजा की, पुजारी जी जो बचपन से ही मंदिर से बंधे हैं से मंदिर के बारे जान कारी ली ! यहाँ सब कुछ है, कुदरत की सुन्दरता, सड़क, आराम दायक रास्ते, गाँवों से दूर ऊंचाई पर सजा सजाया मंदिर, लेकिन पानी की समस्या है ! अब स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर कमिटी के प्रयास से प्रदेश सरकार ने नय्यार नदी से पानी लाने के लिए पाइप लाइन बिछा दी गयी हैं ! लगता है अब जल्दी ही इस पूरे इलाके के साथ साथ सामने लैंसी डाउन की भी पानी की समस्या सुलझ जाएगी ! मंदिर का इतिहास डाक्टर विष्णुदत्त कुकरेती जी ने अपनी पुस्तक "हिमालयीय संस्कृति की रीढ़ लंगूरी भैरों" में विवरण इस प्रकार दिया है, डा० कुसुमलता पांडे ने अपने शोध प्रबंध गढ़वाल में लिखा है की 'रात प्रदेश के सात भाई सौरंयाल और नौ भाई कोठियाल नमक खरीदने बनिए की दुकान पर गए ! रात्री में भैरव सौरयाल की कंडी में बैठ गए ! प्रात: उन लोगो ने प्रस्थान किया ! लंगूर गढ़ी में इन्होंने ज्यों ही भोजन बनाकर बांटना प्रारम्भ किया, सात भाइयों का हिस्सा किया तो आठवां हिस्सा अपने आप हो गया ! इस बीच नमक की कंडी फट गयी, भैरव नाथ का लिंग वहां प्रकट हुआ ! इस लिंग के आठ हिस्से हुए जो अष्ट भैरव कहलाए, ये आठों हिस्सों में गिर गए, और उन स्थानों पर इनके मंदिर बन गए ! सबसे पहले मंदिर में हमीं गए थे, हमारे बाद धीरे धीरे लोगों का समूह आता गया ! पुजारी जी कह रहे थे की ख़ास ख़ास पर्वों पर यहाँ अच्छी खासी भीड़ होती है ! श्रद्धालु आते हैं मिन्नतें माँगते हैं और

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